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Thursday, October 8, 2009

"स्वास का महत्व"





15 मार्च की सुबह महाराजी ने हरदोई जिले के मोना ग्राम में अपार जन समूह को संबोधित किया। यह कार्यक्रम 2009 में महाराजी के उत्तर पूर्वी भारत के टूर का पहला कार्यक्रम था। इस कार्यक्रम में हरदोई के समीपवर्ती जिलों से आए लगभग एक लाख, साठ हजार ग्रामीण व शहरी श्रोताओं ने महाराजी के सत्संग का लाभ उठाया।

कार्यक्रम प्रारंभ होने से पूर्व महाराजी के तेरह साल की आयु में कानपुर में संपन्न हुए कार्यक्रम की झलकियां भी दिखाई गईं।

महाराजी ने कहा कि मेरा संदेश तुम्हारे हृदय के लिए है। हर उस व्यक्ति के लिए है जिसके शरीर में यह स्वांस आता है।

घट-घट मोरा सांईया, सूनी सेज न कोय,
बलिहारी उस घट की जिस घट प्रकट होय।।

कबीरदास जी के उपरोक्त दोहे को उद्धृत करते हुए महाराजी ने कहा कि भगवान हर एक व्यक्ति के घट में विराजमान है परंतु वह व्यक्ति धन्य है जिसके हृदय में वह प्रकट हो जाता है। यही वह समय है जब हम उसका अपने हृदय में अनुभव कर सकते हैं, क्योंकि अगर तुम जीतेजी नहीं समझ पाये कि तुम्हारे अंदर क्या चीज छिपी है तो इस संसार से जाने के बाद समझ नहीं पाओगे।

महाराजी ने कहा कि लोग भगवान से सांसारिक वस्तुओं को मांगने के लिए प्रार्थना करते हैं, किन्तु वे भगवान से अपने हृदय के दुख को दूर करने के लिए प्रार्थना नहीं करते हैं। हृदय को पारिवारिक दुख नहीं है, नौकरी या बिजनेस का दुख नहीं है। हृदय की जो वेदना और चाहत है वह यह है कि हे भगवान, मैंने आज तक तेरे को जाना नहीं है।

"मृग नाभी में है कस्तूरी, बन बन फिरत उदासी" को उद्धृत करते हुए महाराजी ने कहा कि जैसे मृग अपने भीतर की कस्तूरी को खोजने के लिए बन बन भटकता फिरता है, उसी प्रकार मनुष्य भी अपने भीतर के भगवान को पाने के लिए दुनिया भर में खोजता रहता है। महाराजी ने आगे कहा कि आत्मज्ञान के द्वारा मनुष्य अपने भीतर के भगवान को जान सकता है, उसका अनुभव कर सकता है।

स्वांस के महत्व पर प्रकाश डालते हुए महाराजी ने पूछा कि वास्तव में तुम्हारी अपनी चीज क्या है। उन्होंने बताया कि जो तुम्हारे हृदय में बैठा है, वह तुम्हारा अपना है। यह जो स्वांस अभी-अभी तुम्हारे अंदर आया, यह तुम्हारा अपना है। इसे कोई चुरा नहीं सकता, कोई किसी को दे नहीं सकता। क्या अपने जीवन में तुम इसके महत्व को समझते हो?

महाराजी ने कहा कि लोग जीवन सफल बनाने के लिए भगवान के आशीर्वाद की कामना करते हैं। उन्होंने कहा कि परमपिता परमेश्वर ने पहले ही तुम्हें स्वांस के रूप में अपना आशीर्वाद दे दिया है। जब तक यह स्वांस तुम्हारे अंदर आ रहा है और जा रहा है, उसका हाथ तुम्हारे सिर पर है। प्रश्न उठता है कि फिर मनुष्य दुख क्यों उठाता है। महाराजी ने समझाया कि जब तक तुम जीवित हो तुम्हारे अंदर सुख और दुख दोनों ही अनुभव करने की क्षमता है, जब तुम दुनिया से चले जाओगे तो फिर किसी चीज का अनुभव नहीं कर पाओगे।

महाराजी ने हाल ही इटली में संपन्न हुए अपने कार्यक्रम की याद करते हुए शांति के बारे में समझाया कि शांति भगवान की सुगंध है जो मनुष्य के भीतर स्थित है। वह ऐसी सुगंध है कि मनुष्य उसमें अपना सारा तन, मन, समय सब खोकर उसका आनंद ले। जब वह उसे महसूस करता है तब उसके जीवन में शांति आती है और वह संशय, दुख और भ्रम की दुर्गंध से बचता है।

महाराजी ने कहा कि अज्ञानता के कारण लोग भगवान पर भी शंका करते हैं। उन्होंने कहा कि शंका व भ्रम से निकल कर सर्वप्रथम आत्मज्ञान के द्वारा उस परम सत्ता का अपने हृदय में अनुभव करो, और तब भगवान पर विश्वास करो। अंध-विश्वास नहीं।

महाराजी ने कहा कि एक दिन आएगा कि यह मनुष्य जाति नहीं रहेगी, किन्तु वह भगवान अनंत है, वो था, है, और हमेशा रहेगा। उसकी कोई सीमा नहीं है। तुम्हारे लिए सबसे बड़ी खुशखबरी यह है कि तुम जीवित हो और उसे अपने हृदय में जान सकते हो, उसका अनुभव कर सकते हो, तब तुम्हारे जीवन में आनंद की ऐसी लहर आएगी कि चाहे अपार दुख क्यों न आएं परंतु वे तुम्हें प्रभावित नहीं कर पाएंगे। चाहे तुम बूढ़े हो या जवान हो, धनी हो या निर्धन हो, दुर्बल हो या शक्तिशाली हो, हर एक व्यक्ति के जीवन में यह संभावना है।
महाराजी ने आगे कहा कि जीवन में जीते जी शांति को प्राप्त करने के लिए मनुष्य बालक के हृदय के साथ, छल कपट को त्यागकर समय के महापुरुष से आत्मज्ञान को प्राप्त करे। उन्होंने कहा कि खोजो, ढूंढो, जहां मिले वहीं ठीक है, अगर नहीं मिले तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं। मैं यह प्रेम व मानवता के नाते से कह रहा हूं, किसी अहंकारवश नहीं। मैंने बहुत पहले कहा था, "तुम मुझे प्रेम दो, मैं तुम्हें शांति दूंगा।" इसी संदेश को लेकर मैं सारे संसार में जाता हूं और लोगों को शांति और प्रेम का संदेश देता हूं।

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