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Thursday, October 8, 2009

"सच्चे सद्गुरु की कसौटी"

सच्चे सद्गुरु की कसौटी : महाराजी!
Maharaji Lecture In Delhi
8 मार्च 2009


8 मार्च, राज विद्या केन्द्र, नई दिल्ली में आसपास के क्षेत्रों से आए 35 हजार से भी अधिक लोगों ने महाराजी के सत्संग कार्यक्रम व होली महोत्सव का आनंद उठाया । इस अवसर पर महाराजी ने कहा कि अनुशासन की वजह से तुम अपनी जिंदगी में संतुलन बनाए रखते हुए जिंदगी को आसान बना सकते हो। ज्ञान मार्ग में आगे बढ़ने के लिए छल-कपट व अहंकार को त्याग कर बालक के हृदय और समय के महापुरुष के मार्गदर्शन की सतत आवश्यकता है।

यदि तुम बालक का हृदय लेकर इस मार्ग में चलोगे तो बहुत कुछ सीख सकोगे, जबकि अभिमानी बनकर कुछ भी हाथ नहीं आएगा, क्योंकि बालक अपने हृदय से आगे बढ़ता है जबकि मनुष्य िदमाग से। लोग तो अभिमान के कारण सत्संग भी नहीं सुनते हैं।

महाराजी ने सद्गुरु की पहचान बताते हुए कहा कि सद्गुरु की एक ही कसौटी है कि वे जिज्ञासुअों को आत्मज्ञान देते हैं और उसके साथ ही ज्ञान-मार्ग में आगे बढ़ने के लिए मार्गदर्शन भी करते हैं। उन्होंने सत्संग के महत्व के बारे में बताया कि सत्संग सुनने से ज्ञान-मार्ग में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा मिलती है। महाराजी ने कहा कि छल-कपट घर में पड़े कूड़े की तरह है। उसे हर दिन साफ करना पड़ता है।

तुम जिंदगी में जो कुछ भी करना चाहो करो, लेकिन सतनाम का चिंतन भी जरूर करो, क्योंकि वह तुम्हारे हर स्वांस में बसा हुआ है। जब तुम भगवान का अपने हृदय में साक्षात अनुभव करते हो तो वह तुम्हें आनंद रूपी उपहार देता है, क्योंकि वह तुम्हारे हृदय में ही बसा हुआ है। उन्होंने कहा कि अपने हृदय में ज्ञान का दीपक जलाओ क्योंकि वह तुम्हारे जीवन में बड़े से बड़े अंधकार को भी दूर कर देगा।

"ज्ञान रूपी दीये को जलाओ, ताकि तुम्हारे जीवन में भी प्रकाश हो। अंधेरी रात में हजारों बल्बों की जरूरत नहीं है, सिर्फ एक दीये की जरूरत है। अगर वह दीया जलता रहा तो अंधेरा तुम्हारे नजदीक नहीं आ पाएगा, चाहे कितना भी घना अंधकार हो।"

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