
प्रकृति की गोद में स्थित बनटोली, रांची में बही सत्संग की गंगा! महाराजी
25 मार्च 2009
रांची शहर से लगभग 35 किमी की दूरी पर स्थित छोटा सा गांव बनटोली की प्राकृतिक छटा देखने लायक है, छोटी-छोटी पहाड़ियां और ऋतुराज बसंत में पुष्पों की सुगंध से सुवासित शीतल बयार यहां के प्राकृतिक सौन्दर्य में चार चांद लगा देती है। 25 मार्च 2009 को यहां राज विद्या केन्द्र के परिसर में आयोजित एक अभूतपूरव सत्संग व होली कार्यक्रम में भाग लेने आए लगभग एक लाख लोगों के दिलों को ज्ञान से ओत-प्रोत कर दिया। एक दिन पूर्व से ही बनटोली में लोगों के आने का सिलसिला जो शुरू हुआ वह कार्यक्रम तक चलता रहा। रांची व आसपास के जिलों से आए लोग गुरु महाराजी की एक झलक की दर्शन करने व उनके अमृत वचनों को सुनने के लिए बेताब हो रहे थे।
अपने सम्बोधन के प्रारंभ में महाराजी ने शांति को मनुष्य जीवन की प्राथमिकता बताते हुए कहा कि अगर जीवन से शांति चली गई, तो उसके पास सबकुछ होते हुए भी कुछ नहीं है। मनुष्य जीवन में जो कुछ भी कर्म करता है, उसके मूल में यही है कि जीवन सुख, चैन व शांति से भरा हो। जो मूल चीज है, उसे मनुष्य को कभी नहीं भूलना चाहिए। मनुष्य के जीवन में सुख और दुख दोनों ही आते हैं। पर जब दिक्कतें आती हैं तो मनुष्य घबरा जाता है, भ्रमित हो जाता है कि सत्य क्या है। लोग तो मुसीबत में पड़कर भगवान पर भी शंका करने लगते हैं कि भगवान है भी कि नहीं, या हे भगवान तूने मुझे क्यों छोड़ दिया। महाराजी ने कहा कि यदि तुम अच्छे समय का आनंद ले रहे हो तो साथ ही बुरे समय के लिए भी तैयारी करते रहो। यदि तुम जागृत रहोगे तो फिर कठिन से कठिन समय भी आसानी से कट जाएगा।
महाराजी ने कहा कि असली चीज मनुष्य के भीतर है, बाहर नहीं। उन्होंने कहा कि ज्ञान की कथा अनंत है। यह कथा तुम्हारी कथा है, जिनको ज्ञान मिला है यह उनके जीवन की कथा है। इस कथा का प्रसाद है वह आनंद जो तुम अपने जीवन मे प्राप्त करते हो।
इस अवसर पर लोगों ने अपने हृदय के उद्गारों को महाराजी व उपस्थित जन समूह के सामने व्यक्त किया और महाराजी से अपने प्रश्नों का समाधान प्राप्त किया। एक जिज्ञासु हृदय के भावों के प्रत्युत्तर में महाराजी ने कहा कि ज्ञान मार्ग में भी मनुष्य को परिश्रम करना चाहिए। दैनिक जीवन में अनुशासन के महत्व पर जोर देते हुए महाराजी ने समझाया कि अनुशासन का पालन करने से दुष्कर कार्य भी बेहतर हो सकते हैं। जैसे हम हर कार्य के लिए समय निर्धारित करते हैं, वैसे ही ज्ञान अभ्यास के लिए भी समय निश्चित करना चाहिए क्योंकि जहां चाह है वहां राह जरूर निकलती है। ज्ञान से जुड़े रहने के लिए व्यक्ति को खुद ही प्रयास करना होगा। जीवन में अनुशासन का पालन करने से यह कार्य अति सरल हो जाता है।
सत्संग कार्यक्रम के बाद अपार जन समूह ने लोकगीत व भजनों का आनंद लिया। 'गुरु चरण में चढ़इले गेंदा फूल हरे लाले लाल' और 'बनटोली मे फिर आना गुरु महाराज' ने तो हर भक्त के हृदय की भावनाओं को ही जैसे व्यक्त कर दिया था। इस कार्यक्रम ने सभी के हृदयों में अपनी अमिट छाप छोड़ दी। बनटोली का यह कार्यक्रम एक अविस्मरणीय कार्यक्रम रहा। महाराजी से एक नयी जीवन-दृष्टि व प्रेरणा पाकर लोगों के हृदय आनंद व प्रेम से भर गए।
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