पवित्र गंगा के किनारे, विंध्याचल पर्वत श्रृंखला में बसा मिर्जापुर शहर एक ऐतिहासिक शहर है। मिर्जापुर से लगभग 16 किमी की दूरी पर स्थित सिकटही ग्राम में सतनाम फ्लैग्स फाउन्डेशन की ओर से आयोजित कार्यक्रम में मिर्जापुर एवं समीपवर्ती इलाकों के लगभग 10 हजार लोगों ने महाराजी के सत्संग का आनंद उठाया। कार्यक्रम के प्रारंभ में संतो के प्रेरणादायी भजनों के उपरांत महाराजी के जीवन परिचय की झलक वीडियो के माध्यम से दिखाई गई, जिसका श्रोताओं ने भरपूर आंनद उठाया।
इस अवसर पर महाराजी ने अपनी पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहा कि कई साल पहले, जब मैं बहुत छोटा था तो मैंने कहा था कि मिर्जापुर से पूरी दुनिया में सतनाम का झंडा लहरायेगा, जो आज सच साबित हुआ।
महाराजी ने कहा कि दुनिया की जिन चीजों पर तुम गर्व करते हो, यह सब यहीं रह जायेंगी। यह शरीर मिट्टी का बना है और एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा। ऐसी चीज से नाता जोड़ो जो तुमसे कभी जुदा न हो। उन्होंने आत्मज्ञान की आवश्यकता पर बल देते हुए कि ज्ञान से तुम्हारा जीवन सफल हो सकता है। आत्मज्ञान के अभ्यास से दुनिया भर की चिंताओं से मुक्ति मिलती है और मनुष्य जीते-जी जीवन में परमानंद के अनुभव को प्राप्त करता है और उसका हृदय अपने ज्ञान-दाता के प्रति सच्चे आभार से भर जाता है जिसने उसे परमानंद को पाने का सच्चा मार्ग दिखाया है।
महाराजी ने स्पष्ट किया कि हम धर्म और पुस्तक में लिखी बातों की चर्चा नहीं करते। हमारा संदेश है कि इस ज्ञान के द्वारा तुम अपना जीवन सफल कर सकते हो। तुम अपने जीवन में प्रकाश लाने के लिए अंधेरे को दूर करना चाहते हो। अंधेरा प्रकाश के बिल्कुल करीब है, किन्तु जहां प्रकाश है, वहां अंधेरा नहीं है। अंधेरे को दूर करने के लिए जीवन में ज्ञान के दीये को जलाओ और उसे सदा अपने पास रखो, तुम जहां भी जाओगे, वहीं प्रकाश हो जाएगा। महाराजी ने कहा कि जीवन मार्ग में अनेक तरह की बाधाएं आती हैं जिनसे मनुष्य दुखी हो जाता है। गुरु महाराजी तुम्हारे अंधेरे जीवन में ज्ञान का दीया जलाते हैं जिससे तुम्हें जीवन में ठोकर न खानी पड़े। अपने दीये में समझ रूपी तेल को डालो, गुरु महाराजी जो ज्ञान देते हैं उसकी आग इसमें जलने दो, ताकि तुम्हारे जीवन मे प्रकाश हो।
महाराजी ने कहा कि मनुष्य अनिष्ट की आशंकाओं से पीड़ित रहता है। भय के कारण भगवान की आराधना करता है कि कहीं भगवान रूठ न जाएं जबकि सच्चाई यह है कि वह तो परम दयालु है। वह भगवान तो तब भी था, जब उसकी आराधना करने के लिए मनुष्य का अस्तित्व ही नहीं था।
महाराजी ने कहा कि मनुष्य सांसारिक मान्यताओं रूपी डब्बे में कैद रहता है, और गुरु महाराजी बिना उस डब्बे को खोले, छुए उसे उस कैद से मुक्ति दिलाते हैं। उनके पास विधि है, वे ही हैं जो बताते हैं कि इस डब्बे में एक छेद है और वह छेद है मनुष्य का हृदय, जिसके द्वारा तुम उस कैद से निकलकर बच सकते हो। उन्होंने कहा कि मनुष्य के हृदय में ही मौजूद है उसे कैद से आजाद करने की चाबी। उसके हृदय में अपने सृष्टिकर्ता को जानने की प्यास लगती है और वहीं वह परम आंनद भी मौजूद है।
महाराजी ने कहा कि मनुष्य अज्ञानता के कारण भगवान को मनुष्य रूप दे देता है। चित्रकार अपनी कल्पना से भगवान की फोटो बनाता है और लोग फोटों में ही उलझकर असली चीज से वंचित रह जाते हैं। महाराजी ने कहा कि जैसे कोई पत्नी की फोटो को ही सबकुछ मानकर उससे प्यार करने लगे और पत्नी को छोड़ दे तो उसे उचित नहीं कहा जा सकता है। उसी तरह जीवन में असली चीज को भी समझो। महाराजी ने कहा कि हम जीते जी स्वर्ग का आनंद लेने की बात करते हैं। सच्ची जिज्ञासा और प्यास से आगे बढ़ो।
कार्यक्रम के बाद श्रोताओं ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें यह कार्यक्रम इतना अच्छा लगा कि इसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। कभी सोचा भी नहीं था कि इस जंगल के बीच में भी इतना अद्भुत प्रोग्राम होगा और सत्संग की गंगा बहेगी।
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